Wednesday, April 30, 2025

पी. वी. नरसिम्हा राव की जीवनी: P V Narasimha Rao biography in Hindi



 पी. वी. नरसिम्हा राव की जीवनी:  P V Narasimha Rao biography in Hindi


पामुलपर्ती वेंकट नरसिम्हा राव, जिन्हें पी. वी. नरसिम्हा राव के नाम से जाना जाता है, भारत के नौवें प्रधानमंत्री और एक दूरदर्शी राजनेता, विद्वान, और साहित्यकार थे। 1991 से 1996 तक अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान, उन्होंने भारत को आर्थिक संकट से उबारकर वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। उनके नेतृत्व में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को उदारीकरण, वैश्वीकरण, और आधुनिकता की राह पर ले जाकर इतिहास रचा। 

P V Narasimha Rao biography in Hindi


प्रारंभिक जीवन: ग्रामीण परिवेश में शुरुआत


पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को तेलंगाना (तब हैदराबाद रियासत) के करीमनगर जिले के लकनेपल्ली गाँव में हुआ था। वे एक मध्यमवर्गीय तेलुगु ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता, पामुलपर्ती रघव राव, एक किसान और जमींदार थे, जबकि उनकी माता, रुक्मिणम्मा, एक गृहिणी थीं। नरसिम्हा राव अपने नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता, जहाँ उन्होंने प्रकृति, संस्कृति, और सामुदायिक जीवन के मूल्यों को आत्मसात किया।


नरसिम्हा राव बचपन से ही मेधावी और जिज्ञासु थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर के एक स्थानीय स्कूल में शुरू की और बाद में वारंगल के स्कूलों में पढ़ाई की। उनकी रुचि पढ़ने और विचार-विमर्श में थी। कम उम्र में ही उन्होंने तेलुगु साहित्य, इतिहास, और दर्शन में गहरी रुचि विकसित कर ली। उनकी माता ने उन्हें धार्मिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी, जो उनके जीवन में हमेशा मार्गदर्शक बने रहे।


शिक्षा: बौद्धिकता का आधार


नरसिम्हा राव ने अपनी उच्च शिक्षा उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से शुरू की, जहाँ उन्होंने कला स्नातक (बीए) की डिग्री हासिल की। उनकी पढ़ाई का मुख्य विषय इतिहास और साहित्य था। इसके बाद, उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री (एलएलबी) प्राप्त की और वकालत शुरू की। उनकी शिक्षा ने उन्हें एक गहरी बौद्धिक नींव प्रदान की, जो बाद में उनकी राजनीतिक और साहित्यिक यात्रा में महत्वपूर्ण साबित हुई।


नरसिम्हा राव को कई भाषाओं का ज्ञान था, जिनमें तेलुगु, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, संस्कृत, और फ्रेंच शामिल थीं। उनकी भाषाई क्षमता ने उन्हें एक प्रभावी वक्ता, लेखक, और कूटनीतिज्ञ बनाया। वे तेलुगु साहित्य के प्रति विशेष रूप से उत्साही थे और उन्होंने कई तेलुगु कविताओं और रचनाओं का अनुवाद किया। उनकी यह बौद्धिकता उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करती थी।


स्वतंत्रता संग्राम में योगदान


नरसिम्हा राव ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे महात्मा गांधी के अहिंसा और सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों से गहरे प्रभावित थे। 1930 के दशक में, उन्होंने हैदराबाद रियासत में निज़ाम शासन के खिलाफ चल रहे आंदोलन में भाग लिया। उस समय, हैदराबाद रियासत में निज़ाम का शासन अत्यंत दमनकारी था, और स्थानीय लोग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।


नरसिम्हा राव ने हैदराबाद स्टेट कांग्रेस के साथ मिलकर निज़ाम के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन किए। इस दौरान, उन्होंने कई बार जेल यात्राएँ कीं और निज़ाम के अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाई। उनकी यह सक्रियता उन्हें एक युवा नेता के रूप में स्थापित करने में मददगार साबित हुई। स्वतंत्रता के बाद, जब 1948 में हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ में शामिल किया गया, नरसिम्हा राव ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


राजनीतिक करियर की शुरुआत


स्वतंत्रता के बाद, नरसिम्हा राव ने अपनी राजनीतिक यात्रा को और गति दी। 1957 में, उन्होंने आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में हनमकोंडा सीट से जीत हासिल की और विधायक बने। इसके बाद, वे 1962, 1967, और 1972 में भी विधायक चुने गए। इस दौरान, उन्होंने आंध्र प्रदेश सरकार में विभिन्न मंत्रालयों में काम किया, जिनमें शिक्षा, कानून, और गृह मंत्रालय शामिल थे।


उनके प्रशासनिक कौशल और नीतिगत समझ ने उन्हें आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक मजबूत स्थान दिलाया। 1971 में, नरसिम्हा राव ने लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा सीट से जीत हासिल की और पहली बार संसद सदस्य बने। 1977 और 1980 में भी वे लोकसभा के लिए चुने गए।


1980 में, जब इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं, नरसिम्हा राव को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। उन्होंने विदेश मंत्रालय (1980-1984), गृह मंत्रालय, और मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभागों का नेतृत्व किया। विदेश मंत्री के रूप में, उन्होंने भारत की कूटनीतिक स्थिति को मजबूत किया और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी विदेश नीति की समझ और कूटनीतिक कौशल ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी।


प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1991-1996)


1991 में, राजीव गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस पार्टी ने अप्रत्याशित रूप से नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। उस समय भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुके थे, और देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से ऋण लेना पड़ा था। नरसिम्हा राव ने इस चुनौती को स्वीकार किया और भारत को आर्थिक संकट से उबारने के लिए कठोर निर्णय लिए।


आर्थिक सुधार: उदारीकरण और वैश्वीकरण की नींव


नरसिम्हा राव के नेतृत्व में, भारत ने 1991 में ऐतिहासिक आर्थिक सुधार शुरू किए। उनके वित्त मंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह, ने इन सुधारों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। प्रमुख सुधार इस प्रकार थे:

लाइसेंस राज का अंत: नरसिम्हा राव सरकार ने उद्योगों के लिए लाइसेंस प्रणाली को समाप्त किया, जिससे निजी क्षेत्र को अधिक स्वतंत्रता मिली। इससे उद्यमिता को बढ़ावा मिला और नए व्यवसायों की स्थापना आसान हुई।

विदेशी निवेश को प्रोत्साहन: सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को प्रोत्साहित किया, जिससे विदेशी कंपनियों ने भारत में निवेश शुरू किया। इसने भारत को वैश्विक व्यापार का हिस्सा बनाया।

विनिवेश: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी को कम किया गया, जिससे निजीकरण को बढ़ावा मिला। इससे सरकारी कंपनियों की कार्यक्षमता में सुधार हुआ।

वित्तीय सुधार: बैंकों और वित्तीय संस्थानों को और अधिक स्वायत्तता दी गई, और वित्तीय क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया गया। नई बीमा और बैंकिंग नीतियों ने वित्तीय क्षेत्र को मजबूत किया।

कर सुधार: कर प्रणाली को सरल बनाया गया, और आयात शुल्क को कम किया गया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला। इससे भारत का निर्यात बढ़ा और वैश्विक व्यापार में उसकी हिस्सेदारी बढ़ी।

इन सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। 1991 के बाद, भारत की जीडीपी वृद्धि दर में सुधार हुआ, और देश ने वैश्वीकरण की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए। नरसिम्हा राव को "भारत के आर्थिक सुधारों का जनक" कहा जाता है, क्योंकि उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी।


विदेश नीति: लुक ईस्ट पॉलिसी और कूटनीति


नरसिम्हा राव ने भारत की विदेश नीति को भी नई दिशा दी। उन्होंने "लुक ईस्ट पॉलिसी" की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करना था। इस नीति के तहत, भारत ने सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, और अन्य आसियान देशों के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध बढ़ाए। यह नीति आज भी भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।


नरसिम्हा राव ने रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, और अन्य प्रमुख देशों के साथ भी भारत के संबंधों को मजबूत किया। उनके कार्यकाल में भारत ने परमाणु नीति को लेकर भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण की नींव उनके कार्यकाल में ही तैयार हो चुकी थी, जिसने भारत को एक मजबूत रक्षा शक्ति के रूप में स्थापित किया।


सामाजिक और शैक्षिक सुधार


नरसिम्हा राव ने शिक्षा और सामाजिक विकास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू किया गया, जिसने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को मजबूत करने पर जोर दिया। उन्होंने तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) और अन्य तकनीकी संस्थानों को विस्तार दिया।


सामाजिक समावेशन के लिए, नरसिम्हा राव ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की दिशा में कदम उठाए। इस निर्णय ने सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी के लिए आरक्षण को लागू किया। हालाँकि, इस निर्णय ने देश में व्यापक विरोध और बहस को जन्म दिया।


बुनियादी ढांचा और प्रौद्योगिकी


नरसिम्हा राव के कार्यकाल में बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी प्रगति हुई। उन्होंने दूरसंचार क्षेत्र में सुधार किए, जिसने भारत में टेलीफोन और इंटरनेट सेवाओं के विस्तार की नींव रखी। रेलवे और सड़क नेटवर्क के विस्तार के लिए भी कई परियोजनाएँ शुरू की गईं।


चुनौतियाँ और विवाद


नरसिम्हा राव का कार्यकाल कई चुनौतियों और विवादों से भरा रहा। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी और विवादास्पद घटना थी। इस घटना ने देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया और नरसिम्हा राव की सरकार पर गंभीर सवाल उठाए गए। उनके आलोचकों का कहना था कि सरकार ने इस घटना को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए। नरसिम्हा राव ने बाद में अपनी पुस्तक "अयोध्या 6 दिसंबर 1992" में इस घटना पर अपने विचार व्यक्त किए।


1993 में, हरशद मेहता स्टॉक मार्केट घोटाले ने उनकी सरकार को हिलाकर रख दिया। इस घोटाले ने भारतीय शेयर बाजार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना हुई। इसके अलावा, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) रिश्वत कांड में नरसिम्हा राव पर सांसदों को खरीदने का आरोप लगा। हालाँकि, वे इन मामलों में कानूनी रूप से दोषी नहीं पाए गए, लेकिन इन विवादों ने उनकी छवि को प्रभावित किया।


1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद, नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। उनकी हार का कारण पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद, विवाद, और सांप्रदायिक तनाव को माना जाता है। इसके बाद, वे सक्रिय राजनीति से धीरे-धीरे हट गए।


व्यक्तिगत जीवन और साहित्यिक योगदान


नरसिम्हा राव का व्यक्तिगत जीवन सादगी और बौद्धिकता से भरा था। उनका विवाह सत्यम्मा राव से हुआ था, और उनके आठ बच्चे थे। उनकी पत्नी का निधन 1970 में हो गया था, जिसके बाद उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश पर ध्यान देना शुरू किया।


नरसिम्हा राव एक प्रख्यात लेखक और विद्वान थे। उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें "द इनसाइडर" (एक उपन्यास), "अयोध्या 6 दिसंबर 1992", और "इंडिया एंड द वर्ल्ड" प्रमुख हैं। उनकी लेखन शैली में गहरी ऐतिहासिक और राजनीतिक समझ झलकती थी। वे तेलुगु साहित्य के बड़े समर्थक थे और उन्होंने कई तेलुगु कविताओं और साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद किया। उनकी पुस्तक "द इनसाइडर" भारतीय राजनीति पर एक काल्पनिक कृति है, जो उनके अपने अनुभवों पर आधारित मानी जाती है।


सामाजिक और परोपकारी कार्य


नरसिम्हा राव ने सामाजिक और परोपकारी कार्यों में भी योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई पहल शुरू कीं। उनके कार्यकाल में शुरू की गई योजनाएँ, जैसे ग्रामीण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, आज भी उनके योगदान की गवाही देती हैं। इसके अलावा, उन्होंने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कई शैक्षिक संस्थानों को समर्थन प्रदान किया।


निधन और विरासत


23 दिसंबर 2004 को, नरसिम्हा राव का नई दिल्ली में 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन ने भारत के राजनीतिक और बौद्धिक जगत में एक बड़ा शून्य छोड़ा। उनके अंतिम संस्कार में कई प्रमुख नेता और गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।


नरसिम्हा राव की विरासत आज भी भारत की आर्थिक और राजनीतिक प्रगति में जीवित है। उनके आर्थिक सुधारों ने भारत को एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। उनकी लुक ईस्ट पॉलिसी आज भी भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके साहित्यिक योगदान ने भारतीय साहित्य को समृद्ध किया।


पुरस्कार और सम्मान


नरसिम्हा राव को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले। कुछ प्रमुख सम्मान इस प्रकार हैं:

2002: प्रतिष्ठित "प्रतिभा मूर्ति भवनम पुरस्कार" उनके साहित्यिक और राजनीतिक योगदान के लिए।

2015: मरणोपरांत भारत रत्न की घोषणा, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। हालाँकि, यह पुरस्कार औपचारिक रूप से प्रदान नहीं किया गया।

विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा उनके कूटनीतिक और साहित्यिक योगदान के लिए सम्मान।


पी. वी. नरसिम्हा राव के प्रेरक विचार


नरसिम्हा राव के कुछ प्रेरक विचार इस प्रकार हैं:

"सुधार केवल नीतियों का परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह समाज की सोच को बदलने की प्रक्रिया है।"

"नेतृत्व का अर्थ है कठिन समय में कठोर निर्णय लेना।"

"शिक्षा वह आधार है, जिस पर किसी भी राष्ट्र का भविष्य टिका होता है।"

"वैश्विक मंच पर भारत की पहचान उसकी आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति से बनेगी।"

"सच्चा नेता वही है, जो अपने देश के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखता है।"


नरसिम्हा राव का भारत के विकास में योगदान


नरसिम्हा राव ने भारत के विकास में कई तरह से योगदान दिया। उनके आर्थिक सुधारों ने भारत को वैश्विक व्यापार और निवेश का केंद्र बनाया। उनकी लुक ईस्ट पॉलिसी ने भारत को एशियाई देशों के साथ जोड़ा और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया। उनकी शिक्षा और सामाजिक नीतियों ने भारत के सामाजिक ढांचे को मजबूत किया।

उनके कार्यकाल में शुरू की गई दूरसंचार और बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ भारत की आधुनिकता की नींव बनीं। उनके परमाणु नीति के निर्णयों ने भारत को एक मजबूत रक्षा शक्ति के रूप में स्थापित किया।

नरसिम्हा राव के नेतृत्व के सिद्धांत

नरसिम्हा राव के नेतृत्व के कुछ प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार थे:

दूरदर्शिता: नरसिम्हा राव ने हमेशा दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया, चाहे वह आर्थिक सुधार हों या विदेश नीति।

समावेशिता: उन्होंने सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने के लिए ओबीसी आरक्षण जैसे कदम उठाए।

कूटनीति: उनकी कूटनीतिक क्षमता ने भारत को वैश्विक मंच पर एक सम्मानजनक स्थान दिलाया।

बौद्धिकता: उनकी बौद्धिक दृष्टि ने नीतियों को गहराई और प्रभावशीलता प्रदान की।

निष्कर्ष

पी. वी. नरसिम्हा राव की जीवनी एक ऐसी कहानी है, जो भारत के आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिवर्तन का प्रतीक है। एक साधारण गाँव से निकलकर देश के सर्वोच्च पद तक पहुँचने और भारत को वैश्विक मंच पर स्थापित करने की उनकी यात्रा प्रेरणादायक है। उनके आर्थिक सुधार, विदेश नीति, और साहित्यिक योगदान ने भारत के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है।


यह लेख पी. वी. नरसिम्हा राव के जीवन, उनके संघर्ष, और उनकी उपलब्धियों को विस्तार से प्रस्तुत करता है। यदि आप भारत के आर्थिक सुधारों, आधुनिक भारत के निर्माण, और एक दूरदर्शी नेता की कहानी को समझना चाहते हैं, तो नरसिम्हा राव की जीवनी आपके लिए एक प्रेरणा हो सकती है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प, बौद्धिकता, और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ कोई भी अपने देश और समाज के लिए बड़ा बदलाव ला सकता है।



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